तुलसीदास का जीवन परिचय – तुलसीदास के गुरु कौन थे सम्पूर्ण जानकारी

इस लेख में तुलसीदास का जीवन परिचय -उनसे सम्बंधित पूर्ण जानकारी दी गयी है गोस्वामी तूलसीदास को हिंदी कवि के गुरु माने जाते है भारत के विश्व साहित्य में कवि के रूप में इनका सबसे बड़ा योगदान है ये भगवान श्री राम कि भक्ति के लिए प्रसिद्द है इनके द्वारा ही रामचरित्रमानस, हनुमान चालिशा का लेख किया गया है इसमें भगवान राम कि मर्यादा कि डोर बंधा है तुलसी को रामायण वाल्मीकि काल का अवतार भी माना जाता है।

तुलसीदास का जीवन परिचय
तुलसीदास का जीवन परिचय – तुलसीदास के गुरु कौन थे सम्पूर्ण जानकारी

तुलसीदास का जन्म कब हुआ

तुलसीदास जी का जन्म उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में राजापुर ग्राम में 13 अगस्त सन 1532 ईस्वी में हुआ था कुछ विद्वानों का कहना है कि इनका जन्म एटा नामक जिले के सोरों ग्राम में हुआ है इनके पिता का नाम आत्माराम दुबे और माता जी का नाम हुलसी थी।

तुलसीदास का शुरुआती जीवन

तुलसीदास जी के जन्म के समय वे सामान्य बच्चों की तरह नौ माह में नहीं हुए वे 12 माह तक अपनी माँ के गर्भ में ही रहे जिसके बाद वह इस दुनिया में जन्म लिया और कहा जाता है कि ये अभुक्त मूल नक्षत्र में जन्मे हैं तथा जन्मांतर से ही 32 दांत होने के कारण इनके पिता मनहूस मानते थे और इन्हें बाल अवस्था में ही त्याग दिये थे और त्याग ने के बाद हुलसी की दासी चुनिया को तुलसीदास जी को सौंप दिया गया इनके जन्म के कुछ दिन बाद इनके पिता की मृत्यु हो गई दासी रामबोला को अपने साथ हरिपुर शहर में ले गई चुनिया ने महज 5.5 साल तक रामबोला की देखभाल की जिसके बाद उसकी मृत्यु हो गई

तुलसीदास का नाम रामबोला क्यों पड़ा

इन्होंने जब धरती पर जन्म लिया तब सामान्य बच्चे की तरह रोने की आवाज नहीं निकली इनके जन्म अवस्था के समय से ही इनके मुख में 32 दांत उपस्थित थे ये बचपन से ही राम नाम का उच्चारण करते थे जिसके कारण इनका नाम रामबोला दुबे रखा गया और इसका कथन उन्होंने स्वयं विनयपत्रिका में कहाँ है

तुलसीदास को ज्ञान कैसे प्राप्त हुआ

तुलसीदास जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अयोध्या नगरी से शुरू की इनके द्वारा बताया गया है कि नरहरिदास बाबा मेरे शिक्षा गुरु थे इन्होंने मुझे बहुतायत मात्रा में महाकाव्य और रामचरित्रमानस को कथा के रूप में सुनाया है रामबोला तुलसीदास 15-16 साल की उम्र में पवित्र नगरी वाराणसी चले गए जहाँ पर वे हिंदी साहित्य और दर्शनशास्त्र संस्कृत व्याकरण चार वेद छे वेदांग ज्योतिष जैसे कई शिक्षा का अध्ययन अपने गुरु शेष सनातन से लिये

तुलसीदास का विवाह कब हुआ

तुलसीदास जी का विवाह जेट शुक्ल त्रयोदशी गुरुवार के दिन संत 1583 को वर्ष की आयु में राजापुर से कुछ दूर यमुना नदी के दूसरी छोर पर उपस्थित एक छोटा सा गांव था जहाँ दीनबन्धु पाठक रहते थे आर यह ब्राह्मण परिवार से ताल्लुक रखते थे और इनकी बेटी रत्नावली के साथ तुलसीदास जी का विवाह किया गया लेकिन कुछ कारण वर्ष गौना-रश्मे नहीं हुआ था।

अतः वे कुछ समय व्यतीत करने के लिए काशी चले गए और वहाँ संत शेषसनातन जी के पास रहकर वेद वेदांग का अध्ययन करने लगे काशी में रहते हुए उन्हें अचानक 1 दिन उन्हें अपनी पत्नी रत्नावली की याद आने लगी और वो बेचैन,व्याकुल होने लगे जब उन्हें अपनी पत्नी के बिना नहीं रह गया तो अपने गुरूजी से अनुमति लेकर अपनी जन्मभूमि राजापुर चले गए उस समय इनका गौना – रश्मे नहीं हुआ था जिसके कारण इनकी पत्नी मायके में ही रहती थी।

तुलसीदास रात्रि में निकले

गोस्वामी तुलसीदास जी को उनके बिना रहा नहीं गया तो रात्रि के भयंकर अंधेरे मैं ही उफनती हुई यमुना नदी को तैरकर पार करके सीधे अपनी पत्नी के मायके पहुंचे रत्नावली तुलसीदास जी को इतनी रात अकेले आया देखकर भयभीत हो गई और लोक लॉज के भय को छोड़कर उनके ऊपर क्रोधित हो गई और उन्हें वहाँ से चुपचाप वापस जाने के लिए कहा तो तुलसीदास जी उन्हें उसी समय घर चलाने के लिए कहने लग जाते हैं उनके इस अभद्र व्यवहार जिद से खींचकर रत्नावली ने स्वरचित एक दोहे के अनुसार उन्हें ऐसे शब्द बोले जो तुलसीराम को तुलसीदास बना दिया रत्नावली में जो दोहा बोला वो इस प्रकार है

  • अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति
  • नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत

तुलसीदास दोहे को सुनने के बाद

इस दोहे को सुनते ही वह उसी पल चुप चाप अपनी पत्नी को उसके पिता के घर छोड़ के राजापुर अपने गांव वापस लौट गए उनके पहुंचते ही वहाँ उनको यह पता चलता है कि उनके पिताजी भी अब नहीं रहे तुलसीदास जी के ऊपर पूरा पहाड़ टूट पड़ा उन्हें और भी अधिक कष्ट हुआ उन्होंने अपने पिता जी का विधि विधान से श्राद्ध किया और अपने गांव में ही रहकर गांव वासियों को भगवान राम की कथा सुनने लगे।

भगवान हनुमान जी से मुलाकात

कुछ समय राजापुर में रहने के बाद वे फिर से काशी चले गए और वहाँ की जनता को भगवान राम की कथा सुनाने लगी कथा के दौरान उन्हें 1 दिन मनुष्य के रूप में उनकी मुलाकात प्रेत से हुआ से और उस प्रेत ने उन्हें हनुमान जी का पता बताया गोस्वामी तुलसीदास हनुमान जी से पहली मुलाकात वाराणसी  हुआ उनसे मिलकर अनुरोध करने लगे कि मुझे श्री राम जी का दर्शन करा दीजिये हनुमान जी ने उनसे कहा ,तुम्हें श्री रामजी का दर्शन चित्रकूट में होंगे। तुलसीदास जी इस बात को सुनकर चित्रकूट की ओर चल पढ़ें

भगवान श्री राम से मुलाकात

चित्रकूट पहुँचकर तुलसीदास जी वहाँ ठहरने के लिए व्यवस्था किए 1 दिन हुए भ्रमण करने के लिए निकले थे की यकायक रास्ते में उन्होंने देखा घोड़ी पर सवार होकर दो इधर राजकुमार सवार होकर हाथों में धनुष बाढ़ लिए जा रहे हैं तुलसीदास जी उन्हें देखकर आकर्षित तो हुए मगर उन्हें पहचान नहीं पाए। उसी समय हनुमान जी ने आकर उन्हें बताया कि जो आपने दो सुंदर राजकुमार देखें वही प्रभु श्रीराम और उनके छोटे भाई लक्ष्मण थे तुलसीदास जी इस बात को सुन कर बहुत ही अफसोस करने लगे हनुमान जी उन्हें आश्वासन देते हुए कहा कि चिंता मत करो प्रातःकाल फिर दर्शन होंगे

कुछ वर्ष पश्चात सन 1607 में बुधवार के दिन मौनी अमावस्या को भगवान श्री राम उनके सामने पुनः प्रकट हुए उन्होंने अपना अवतार बदलकर बालक के रूप में तुलसीदास से आकर कहा, बाबा हमें चंदन चाहिए क्या आप हमें चंदन दे सकते हो हनुमान जी उस बालक को पहचान चूके थे हनुमान जी सोचने लगे की इस बार भी इन्हे धोका न हो इसलिए उन्होंने तोते का रूप में आकर यह दोहा कहा:

  • चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर।       
  • तुलसिदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥

तुलसीदास भगवान श्रीराम जी की इस अद्भुत रूप को देखकर सुध बुध ही भूल गए। अंततः भगवान ने स्वयं अपने हाथ से चंदन लिया हर तुलसीदास जी के मस्तक पर लगाया और वहाँ से अदृष्य हो गए।

भगवान शंकर जी ने आदेश दिया

तुलसीदास जी सो रहे थे तब उन्हें एक सपना आया सपने में भगवान शंकर ने उन्हें आदेश दिया कि तुम अपनी भाषा में काव्य रचना करो शिव जी की आज्ञा मानकर रामबोला अयोध्या आ गए संवत 1631 को रामनवमीं के दिन वैसा ही योग था जैसा त्रेतायुग में राम जन्म के समय था उस दिन से ही सुबह तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना की शुरुआत की दो वर्ष सात महीने 26 दिन में संपूर्ण हुआ 1633 के मार्गशीर्ष पक्ष में राम विवाह के दिन इस ग्रंथ के सातों कांड पूर्ण हुए और भारतीय संस्कृति को श्रीरामचरित्र मानस के रूप में अमूल्य निधि प्राप्त हुई

रामचरित्रमानस ग्रंथ कि प्रमुखता

इस ग्रंथ को लेकर तुलसीदास जी काशी चले गए इस पुस्तक को विश्वनाथ के मंदिर में रख दी सुबह जब मंदिर के पट खुले तो उस पर सत्यम शिवम सुन्दरम लिखा था और नीचे भगवान शंकर के हस्ताक्षर थे उस समय उपस्थित लोगों ने सत्यम शिवम सुन्दरम की आवाज़ भी अपने कानों से सुनें जब ये सुना तो तुलसीदास जी के प्रति ईर्षा करने लगे उन्होंने तुलसीदास जी का मजाक बनाने के लिए भगवान काशी विश्वनाथ के मंदिर मैं सामने सबसे ऊपर भेद उनके नीचे शास्त्रों के नीचे पुराण और सबसे नीचे रामचरित्रमानस और मंदिर बंद कर दिया तो मैं जब मंदिर खोला गया तो देखा गया की रामचरित्रमानस के सबसे ऊपर रखा हुआ है यह देख कर पंडित लोग बहुत लज्जित हुए और उन्होंने तुलसीदास जी से क्षमा मांगी और रामचरित्रमानस को सर्व प्रमुख ग्रंथ माना

तुलसीदास जी का वाल्मीकि अवतार

गोस्वामी तुलसीदास जी को हिंदी भाषा के सर्वश्रेष्ठ प्रसिद्ध महान कवि माना जाता है इन्होंने अपनी जीवन की अवधि में 12 ग्रंथ लिखे है इन्हें महर्षि वाल्मीकि कलयुग का रूप भी माना जाता है इनके द्वारा रचित रामचरित्रमानस को उत्तर भारत के समस्त लोग बड़े भक्तिभाव से अध्ययन करते है इस ग्रंथ को विश्व के प्रसिद्ध 100 लोकप्रिय काव्यों में रामचरित्रमानस को 46 वां स्थान दिया गया है।

तुलसीदास की रचनाएँ

तुलसीदासजी ने अपने जीवनकाल में कई सारे प्रमुख ग्रंथ काव्य की रचना की है जिसमे शुरुआत के समय में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध पांच रचनाएँ है जो हर जगह फैली है ओर वीना पत्रिका को इन्होंने अपनी मृत्यु के अंतिम क्षण में लिखा था और भगवान श्रीराम के चरणों में समर्पित कर दिया

  • रामचरित्रमानस
  • हनुमान चालिसा
  • गीतावली
  • रामललानहछू
  • विनयपत्रिका
  • रामाज्ञाप्रश्न
  • बरवै रामायण
  • दोहावली
  • पार्वती मंगल
  • श्रीकृष्ण गीतावली
  • वैराग्य संदीपनी
  • संकट मोचन
  • जानकी मंगल
  • झूलना
  • सतसई
  • छप्पय रामायण
  • खरका रामायण
  • कवित्त रामायण
  • कुंडलिया रामायण
  • राम शलाका
  • कलिधर्माधर्म निरूपण
  • रोला रामायण
  • छंदावली रामायण 

तुलसीदास की भाषा शैली

उन्होंने अपनी भाषा शैली में ज्यादातर लोग भाषा का इस्तेमाल किया है या कहे तो जिससे क्षेत्र में जैसी भाषा बोली जाती थी इनकी रचनाएँ उसी भाषा से रचित की जाती थी इनकी ज्यादातर अवधी ब्रज भाषा का भी उपयोग किया गया है जिसके अन्तर्गत जैसे –  रामचरित्रमानस, दोहावली, विनय पत्रिका, कवितावली, ब्रज भाषा में लिखा गया है

इन के अलंकार में सबसे ज्यादा उपमा उत्प्रेक्षा और अनुप्रास अलंकार का उपयोग किया गया है अगर इनके चंद की बात करें तो इन्होंने चौपाई छंद दोहा छन्द सवैया चंद छपाई चंद का सबसे ज्यादा प्रयोग किया जिसकारण लोगों को इनकी रचनाएँ और काव्य को अध्ययन करने में काफी मज़ा और रोमांचकता आने लगती है

तुलसीदास जी की मृत्यु कब और कहां हुई

हिंदी कवि के ज्ञान सागर कहे जाने वाले गोस्वामी तुलसीदास जी की मृत्यु मंदिर निर्माण के उपरांत उन्होंने अस्सी घाट नामक स्थान पर श्रावण कृष्ण माह के तीसरे शनिवार को श्री राम भगवान का स्मरण करते हुए 1623 ईस्वी में उनकी मृत्यु हो गई

FAQ –

Q – तुलसी जी का जन्म कब हुआ था?
ANS – 13 अगस्त सन 1532 ईस्वी में हुआ था

Q – तुलसी का दूसरा नाम क्या है?
ANS – रामबोला दुबे

Q – तुलसी जी की पत्नी का क्या नाम था?
ANS – इनकी पत्नी का नाम रत्नावली था

Q – तुलसीदास जी की माता का क्या नाम था?
ANS – इनके माता का नाम हुलसी था

Q – तुलसीदास के पिता का क्या नाम था?
ANS – आत्माराम दुबे था

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