उन्नीसवीं शताब्दी भारतीय इतिहास का पुनर्जागरण काल था इस समय देश के चारों ओर कोने कोने में और इसके साथ ही छत्तीसगढ़ राज्य भी इस जागरण काल के प्रभाव के अंतर्गत परिछालित होने लगा शुरुआत में प्रभाव नगण्य रहा लेकिन समय के साथ साथ धीरे धीरे इसमें परिवर्तन होता चला गया इस पोस्ट के माध्यम से छत्तीसगढ़ में जागरण काल का विवरण दिया गया है

छत्तीसगढ में जागरण काल
1857 ईसवी के उत्पाद में भारत के देसी रियासतों ने पहली बार अधिकांश संख्या में एक साथ मिलकर अंग्रेजो की अनीति के विरुद्ध विरोध में संघर्ष करना चालू किया आजादी के पहले यह छत्तीसगढ़ क्षेत्र जमींदारियों का गढ़ था यहाँ पर महानदी तटवर्ती क्षेत्र और सोनाखान के जमींदार नारायणसिंह बिंझवार के मार्गदर्शन में अंग्रेजों के प्रति विद्रोह करने की कोशिश की गई
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इस विद्रोह के प्रयास का यह अंजाम हुआ की 18 लोगों को फांसी की सजा हुई थी इस घटना ने ज़मींदारी और खालसा भूभाग में रहने वाली जनता को दुखी कर दिया इस स्थापना काल के कुछ वर्षों के विलंब के बाद लोगों के अंदर दबी भय की भावना समाप्त हो गयी जागरूकता की भावना जागृत होने लगी
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इस जागृत चेतना का परिणाम गी हमें शताब्दी में अंतिम वर्षों में स्पष्ट रूप से दृष्टिगत होता है इस परिणाम का सुख का पहलू यह रहा है कि विकास के साथ भागौलिक ढांचे में अभूतपूर्व बदलाव दिखाई देने लगा इस अंचल के ज़मींदारी क्षेत्र पेंड्रारोड से पंडित माधवराव सप्रे और चिंचोलकर के प्रयास से एक बौद्धिक जागृति लाने की कोशिश में मुख्य भूमिका रही है
FAQ –
1 – भारत के देशी रियासतों ने अंग्रेजो पर उनके निति का विरोध कब किया ?
ANS – सन 1857 इसवी को अंग्रेजो के निति के विरुद्ध विरोध किया
2 – भारत के देशी रियासतों के निति विरोध का क्या परिणाम हुआ ?
ANS – इस विरोध के कारण 18 लोगो को फांशी कि सजा दी गयी थी
3 – छत्तीसगढ में जागरण लाने के मुख्या भूमिका किसने निभाई थी ?
ANS – इस अंचल के ज़मींदारी क्षेत्र पेंड्रारोड से पंडित माधवराव सप्रे और चिंचोलकर के प्रयास से एक बौद्धिक जागृति लाने की कोशिश में मुख्य भूमिका रही है