सरगुजा जिला का प्राचीन इतिहास और सभ्यता गौरव युक्त रहा है इसका मुख्यालय अंबिकापुर है रामायण काल में तत्कालीन यह क्षेत्र झारखंड के अंदर समाविष्ट था सरगुजा को 10 वीं सदी में दाण्डोर कहा जाता था यहाँ तत्कालीन अभिलेखों के अनुसार 2100 गांव थे बाद में 22 जमींदारियों में बंट जाने के कारण संगठित रूप से यह 22 दाणडेर कहलाने लगा यहाँ के जंगलों में अत्यधिक हाथी पाए जाते थे और इन हाथियों का उपयोग सैन्य शक्ति के अभियानो में किया जाता था इस जिले में इन हाथियों की मांग प्रमुख शासकों द्वारा किया जाता था सरगुजा जिला का इतिहास – दर्शनीय और धार्मिक स्थल से आच्छादित है 15 वीं शताब्दी में इसी विशेषता के कारण सरगुजा के अंचल को ऐरावत मण्डल कहा जाता था
सरगुजा कि कहावत
सरगुजा जिले के जंगलों में स्वच्छ और विचरण करते हिंसक वन्य प्राणी कोरवा पंडो जैसी विकट धनुर्धर जातियां पिंडरिया द्वारा लूटपाट किये जाने पर यदि इनसे व्यक्ति बच भी जाए तो यहाँ के वातावरण से होने वाले ज्वर, मलेरिया के कारण सरगुजा प्रवास को मृत्यु आलिंगन कारक बना देते थे इसलिए यहाँ के अंचल में यह लोकोक्ति प्रचलित हो गई है सरगुजा में यह कहावत था – जहर खाएं या माहूर खाएं अगर मरेला हो ता सरगुजा जाय।
सरगुजा अपनी इसी विशेषता के कारण अर्थात स्वर्ग जा या मर जा कालांतर में सरगुजा कहलाने लगा डॉक्टर भास्कराचार्य त्रिपाठी का भी यह मानना है कि यहाँ सरभंग ऋषि का आश्रम होने के कारण इस स्थान का नाम सरगुजा हुआ इतना ही नहीं यहाँ अनेकों बुद्धिजीवीको ने अपने हिसाब से नामकरण करते रहे हैं कुल मिलाकर सभी विद्वान सरगुजा स्थल के प्राकृतिक सौंदर्य और इतिहास को रेखांकित करते रहे हैं।
सरगुजा जिले कि स्थापना कब हुई?
सरगुजा जिले कि स्थापना 1 नवम्बर सन 1948 को हुआ है जब मध्यप्रदेश राज्य 1 नवम्बर सन 1956 के तहत निर्माण कार्य हो रहा था उसी समय इस जिले को मध्यप्रदेश में मिलाकर शामिल कर दिया गया था| इसके कुछ समय पश्चात इस जिले को 25 मई सन 1998 को कोरिया जिला बनाया गया | सरगुजा जिला का क्षेत्रफल 16359 वर्ग किलोमीटर है 1 नवम्बर सन 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य मध्यप्रदेश से अलग हुआ तब सरगुजा जिले को छत्तीसगढ़ राज्य में मिला कर शामिल किया गया और आने वाले समय में सरगुजा पुनः दो भागो बात गया और विभक्त होने के बाद सूरजपुर और बलरामपुर जैसे नए जिले के रूप में निर्माण हुआ।
सरगुजा के महाराजा
चौथे इसवी पूर्व मौर्व वंश के लौट आजाने से पहले यह क्षेत्र नन्द वंश राज्य के अधिकार में था 3 रे इसवी पूर्व से पहले इस क्षेत्र को अलग कर छोटे-छोटे भागो में विभक्त कर दिया गया था, जिसके कारण उनके मुखिया अपने लोगो से आपस में ही झगड़ा करते थे, कुछ समय बीत जाने के बाद राजपूत ने राछल वंश झारखण्ड से हमला किया जिसके बाद इस जगह को अपने नियंत्रण में कर लिया अमर सिंह महाराजा के स्वरुप सन 1820 में ताज पहनाया कुछ समय अंतराल रघुनाथ सरण सिंह देव ने सन 1882 को सरगुजा राज्य को अपने कब्जे में कर लिया जिसे महाराजा के रूप में लार्ड दफ्फरिऊ के द्वारा सम्मानित किये गए थे।
सरगुजा के दर्शनीय स्थल
रामगढ़ कि पहाड़ी
सरगुजा में स्थित रामगढ़ कि इस पहाड़ी को सबसे प्राचीन और एतिहासिक माना जाता है | इसको रामगिरि कि भी पहाड़ी कहते है यहाँ उपस्थित पर्वत कि आकृति टोपी के आकार में है रामगढ़ भगवन राम और महाकवि से सम्बंधित होने के कारण शोध का केंद्र रहा है कहा जाता है यह महाकवि कलिदास मेघदूत में वर्णित रामगिरि पर्वत स्थित है |
उन्होंने यहाँ बैठकर कृति मेघदूत कि रचना कि है| मुकुटधर पाण्डेय जी के द्वारा मेघदूत रचना कि छत्तीसगढ़ी अनुवाद किया है| रामगढ़ पहाड़ी कि खोज कर्नल आउसले ने कि है इस जगह पर विश्व कि प्राचीन गुफा और नाट्य शाला स्थित है इसे रामगढ़ नाट्य शाला भी कहा जाता है| रामगढ़ कि पहाड़ी में चंदन कि गुफा भी है यहाँ से लोग मिटटी और इसकी लकड़ी निकालकर इसका उपयोग धार्मिक कार्य हेतु करते है।
सीताबेंगरा
विश्व कि सबसे प्राचीन नाट्यशाला के रूप में सुप्रसिद्ध है रामगढ़ कि पहाड़ियों स्थित सिताबोंगारा कि गुफा यहाँ उपस्थित कुछ ऐसे गुफा है जहाँ सिताबोंगारा कि सबसे पुरानी तथा प्राचीन नाट्यशाला स्थित है। यहाँ पर उपस्थित पत्थरो को काट कर गैलेरी नुमा आकार दिया गया है|इसका प्रमाण है कि सिताबोंगारा के पास ही जोगीमारा गुफा स्थित है और इस गुफा में मौर्य कालीन के अशोक सम्राट के लेख उत्कीर्ण पाया गया है जो 300 ईसा. पूर्व से सम्बंधित है।
जोगीमारा
जोगीमारा गुफा को छत्तीसगढ़ के अजंता के रूप में विख्यात है और इसे मौर्य कालीन शैलचित्र के लिए जाना जाता है। क्योकि यहाँ के गुफाओ में ब्राम्ही लिपि,देवदासी सुतनका के शैलचित्र अंकित है जिनमे कुछ रंगीन चित्र, भी प्रदर्शित है।
मैनपाट
मैनपाट अंबिकापुर से लघभग 49 किलोमीटर कि दुरी स्थित है इस जगह को छत्तीसगढ़ का शिमला भी कहा जाता है। मैनपाट विन्ध पर्वत माला पर स्थित है इसकी उचाई समुद्र तल 1085 मीटर है जिसकी लम्बाई 28 किलोमीटर तथा 10 से 13 किलोमीटर कि चौड़ाई है|यहाँ की सारे दर्शनीय स्थल है मैनपाट में ही तिब्बत शर्णार्थियो को सन 1961-1962 में बसाया था।
कैलाश गुफा
परम पूजनीय संत रामेश्वर गहिरा गुरु जी द्वारा कैलाश गुफा के पहाड़ी चट्टानों को काटकर,तराश कर निर्मित किया गया है। इस स्थल पर महाशिवरात्रि में विशाल मेला का आयोजन किया जाता है इस गुफा के निकट कुछ दर्शनीय स्थल जैसे – गहिरा गुरु आश्रम, शिव पारवती, गुरुकुल संस्कृत विद्यालय, यज्ञ मंडप, बाघ माढ़ा, जल प्रपात है।
सरगुजा ठिनठिनी पत्थर
यहाँ के सर्वाधिक आचार्य जी कहते है इस पत्थर को किसी ठोस वस्तु से ठोकने पर भिन्न-भिन्न धातुओ कि आवाज सुने पढ़ती है जैसे – किसी पत्थर में खली बर्तन को ठोकने समान या तलवार कि ध्वनि कि आवाज आती है जिसके कारण लोग इन पत्थरो को ठिनठिनी पत्थर कहते है।
सरगुजा के धार्मिक स्थल
तकिया सरगुजा
तकिया ग्राम अंबिकापुर नगर के उतर-पूर्व कि छोर पर स्थित है तकिया ग्राम में बाबा मुहम्मद शाह, मुरदा शाह,और उन्ही के पैरों कि तरफ एक छोटी मजार उनके तोते का है। यह हर साल मई और जून के माह में आयोजन होता है, इसमें देशभर के प्रसिद्द जाने माने कव्वाल बुलाये जाते है यहाँ पर सभी धर्म जाति के लोग एक जुट होकर मजार पर चादर चढ़ाया करते है|
पारदेश्वर शिव मंदिर
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यह मंदिर प्रतापपुर विकाश खंड से करीब 1.50 किलोमीटर दक्षिण स्थान कि ओर बनखेता ग्राम में मिशन श्कूल के पास नदी के किनारे में स्थापित है यहाँ के मंदिर 21 खिलो के शुद्ध पारे कि एक अद्भुद पारद शिवलिंग है।
महामाया मंदिर
सरगुजा के मुख्यालय अंबिकापुर के पूर्वी पहाड़ी में प्राचीन हामया देवी का मंदिर स्थित है | इस महामाया मंदिर और अम्बिका देवी के नाम से इस जिला का नाम अंबिकापुर का मुख्यालय नामकरण किया, इस मान्यता के कारण अंबिकापुर मंदिर में महामाया देवी का सिर स्थित है सरगुजा में महामाया मंदिर अत्यंत प्रसिद्द है।
बिलद्वार, सरगुजा
यह गुफा शिवपुर के पास में ही स्थित हैं और इसकी दूरी अंबिकापुर से 30 मिनट की है इसके अंदर प्राचीन मूर्तियां हैं इस जगह पर महान नाम से एक नदी है जिसमें सदैव पानी निकलता रहता है इस गुफा में जो दूसरा द्वार है वह महामाया मंदिर के पास निकलता है।
देवगढ़ सरगुजा
लखनपुर अंबिकापुर से 28 किलोमीटर की दूरी पर है लखनपुर से 10 किलोमीटर की दूरी के बाद देवगढ़ ग्राम स्थित है प्राचीन काल के समय में देवगढ़ के रईसी यमदग्नि की साधना स्थलि रही है।
सरगुजा कि जलवायु
जलवायु व भौगोलिक स्थिति है जो सभी स्थानीय दशाओं के उपर प्रभाव डालती है भारत के मध्य भाग में स्थित है सरगुजा जिला जिसके कारण इस जगह की जलवायु उष्ण और मानसूनी बनी रहती है। इस जिले में मुख्य रूप से तीन ऋतु अवस्थाओं का होता है जो निम्नलिखित हैं –
वर्षा ऋतु
वर्षा ऋतु जुलाई से लेकर अक्टूबर के अंत तक रहती है स्तर गुजा जिले में जुलाई और अगस्त में सबसे अधिक वर्षा होती है तथा दक्षिणी स्थान में हुई सबसे सर्वाधिक वर्षा होती है। बस इस स्थान की वर्षा मानसुनी प्रवृत्ति की होती है।
ग्रीष्म ऋतु
मार्च से जून माह तक की ग्रीष्म ऋतु होती है हालांकि करके रेखा जिले के बीच में प्रतापपुर के निकट से गुजरती हैं जिस कारण गर्मियों में इसी स्थान पर सूर्य की किरणें सीधे सीधे पड़ती है। इसलिए इस जगह का तापमान गर्मियों के समय में अत्यधिक हो जाता है सरगुजा जिले के पठार वाले इलाकों में शीतल और सुंदर महसूस होती है और इसी की वजह से सरगुजा जिलें का मैनपाट, जिसे छत्तीसगढ़ के शिमला उसके नाम से भी जाना जाता है।
शीत ऋतु
शीत ऋतु की शुरुआत नवंबर में होती है और फरवरी माह के अंत तक रहती है इस स्थान में सबसे ज़्यादा ठंड जनवरी माह में होता है इस जिले के कुछ कुछ पहाड़ी इलाकों में जैसे- मैनपाट, सामरीपाठ,इन दोनों स्थानों में 5.0 डिग्री सेल्सियस तक चला जाता है। कभी कभी इस इलाके अत्यधिक ठंड के कारण बर्फ़ भी पड़ती है।
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