गुरु रामदास जी का जीवन परिचय

रामदास का जीवन परिचय

आज मैं आपको चौथे सिख गुरु रामदास जी का जीवन परिचय  के बारे में बताने जा रहा हूँ गुरु रामदास जी सिक्खों के चौथे गुरु थे और उन्हें गुरु की उपाधि सितंबर 1574 को मिली थी गुरु रामदास जी सिक्खों के तीसरे गुरु, गुरु अमर दास जी के दामाद थे गुरु रामदास का जन्म चूना मंडी लाहौर जो कि अब पाकिस्तान में है वहाँ कार्तिक वधि दो संवत 1591 में हुआ था

गुरु रामदास जी का जीवन परिचय
गुरु रामदास जी का जीवन परिचय

अंग्रेजी तारीख के अनुसार इनका जन्म 24 सितंबर 1534 को हुआ था इनकी माता का नाम माता दया कौर जी था और इनके पिताजी का नाम बाबा हरिदास जी था माता दया कौर जी जिन्हें अनूप कौर जी भी कहा जाता है गुरु रामदास जी के जन्म के बचपन का नाम जेठाजी था बाबा हरिदास जी सोडी खत्री का यह पुत्र बहुत ही सुंदर और आकर्षक था

रामदास जी का प्रारम्भिक जीवन

रामदास जी का परिवार बहुत गरीब था उन्हें उबले हुए चने बेचकर अपनी रोज़ी रोटी कमानी पड़ती थी जब वे मात्र सात वर्ष के थे उनके माता पिता की मृत्यु हो गई उनकी नानी उन्हें अपने साथ बसर के गांव ले आयी उन्होंने बसर के में पांच सालों तक उबले हुए चने बेचकर अपना जीवन व्यापन किया एक बार गुरु अमरदास साहिब जी रामदास साहिब जी की नानी के साथ उनके दादा की मृत्यु पर बसर के आए और उन्हें राम दास जी से एक गहरा लगाव सा हो गया

Read More – संत धर्मदास का जीवन परिचय

राम दास जी अपनी नानी के साथ गोइन्दवाल आ गए और वहीं बस गए यहाँ भी वे अपनी रोज़ी रोटी कमाने के लिए उबले हुए चने बेचने लगे और साथ ही गुरु अमरदास साहिब जी की धार्मिक संगतों में भी भाग लेने लगे उन्होंने गोइंदवाल साहिब के निर्माण की सेवा की जैसा कि मैंने आपको बताया राम दास जी का असली नाम जेठाजी था लेकिन उन्हें रामदास नाम अमर दास जी ने ही दिया था

गुरु रामदास जी का विवाह

रामदास साहिब जी का विवाह गुरु अमरदास साहिब जी की पुत्री बीबी भानी जी के साथ हो गया उनके यहाँ तीन पुत्रों ने जन्म लिया इनके पुत्रों के नाम थे पृथ्वीचंद्र जी महादेव जी और अर्जुन साहिब जी है

अमरदास की सेवा करते रहने लगे

शादी के बाद रामदास जी गुरु अमर दास जी के पास रहते हुए गुरुवर की सेवा करने लगे गुरु अमरदास साहिब जी के अतिप्रिय , विश्वासपात्र सिख थे भारत के विभिन्न भागों में लंबे धार्मिक प्रवासों के दौरान गुरु अमर दास जी के साथ ही रहते थे

गुरु रामदास को चौथे गुरु के रूप में चयन किया

गुरु रामदास जी एक बहुत ही उच्च वरीयता वाले व्यक्ति थे वो अपनी भक्ति एवं सेवा के लिए बहुत प्रसिद्ध हो गए थे गुरु अमरदास साहिब जी ने उन्हें हर पहलू में गुरु बनने के योग्य पाया और सितंबर 1574 को उन्हें चौथे नानक के रूप में स्थापित किया गुरु रामदास जी ने ही चकरामदास अर्थात रामदासपुर की नींव रखी जो कि बाद में अमृतसर कहलाया

रामदासपुर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार केंद्र का निर्माण का निर्माण

इस उद्देश्य के लिए गुरु साहिब ने तुंग गिलवाली एवं गुमताला गांव के जमींदारों से संतोखसर सरोवर खुदवाने के लिये जमीनें खरीदी बाद में उन्होंने संतोकसर का काम बंद कर अपना पूरा ध्यान अमृतसर सरोवर खुदवाने में लगा दिया इस कार्य की देखरेख करने के लिए भाई सहेलो जी एवं बाबा बूढ़ा जी को नियुक्त किया गया जल्दी ही नया शहर चक रामदासपुर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का केंद्र होने की वजह से चमकने लगा

यह शहर व्यापारिक दृष्टि से लाहौर के ही तरह महत्वपूर्ण केंद्र बन गया गुरु रामदास साहिब जी ने स्वयं विभिन्न व्यापारों से संबंधित व्यापारियों को इस शहर में आमंत्रित किया यह कदम सामरिक दृष्टि से बहुत लाभकारी सिद्ध हुआ यहाँ सिखों के लिए भजन बन्दगी का स्थान बनाया गया इस प्रकार एक विलक्षण सिख पंथ के लिए नवीन मार्ग तैयार हुआ

सिख पंथ के लिए विलक्षण कार्य

गुरु राम दास साहेब जी ने मंजी पद्धति का संवर्धन करते हुए मंसच पद्धति का शुभारंभ किया मनसच पद्धति से गुरु से दूर रहने वाले सिख भी सिख धर्म का प्रचार सुचारू रूप से कर सकते थे यह कदम सिक्ख धर्म की प्रगति में एक मील का पत्थर साबित हुआ गुरु रामदास साहिब जी ने सिख धर्म को आनंद कारज के लिए चार लावो की रचना की यानी चार फेरों वाली शादी की रचना की और सरल विवाह की गुरूमत मर्यादा को समाज के सामने रखा

Read More – देवदास बंजारे – Devdas Banjare

इस प्रकार उन्होंने सिख पंथ के लिए एक विलक्षण वैवाहिक पद्धति दी इस प्रकार इस भिन्न वैवाहिक पद्धति ने समाज को रूढि़वादी परंपराओं से दूर किया बाबा श्रीचंदजी के उदासी संतों व अन्य मतावलंबियों के साथ सौहार्दपूर्ण संबंध स्थापित किए गुरु साहिब जी ने अपने गुरुओं द्वारा प्रदत्त गुरु के लंगर की प्रथा को आगे बढ़ाया अंधविश्वास वर्ण व्यवस्था आदि कुरीतियों का पुरज़ोर विरोध किया गया

रामदास के श्लोक राग सपथ

उन्होंने 30 रागों में 638 शपथ लिखे जिनमें 246 पौड़ी 138 श्लोक 31 अष्टपदी और 8 वारा है और इन सबको गुरु ग्रंथ साहिब जी में अंकित किया गया है

गुरु रामदास को मृत्यु कब हुई

उन्होंने अपने सबसे छोटे पुत्र अर्जुन साहिब को पंचम नानक के रूप में स्थापित किया इसके पश्चात व अमृतसर छोड़कर गोइंदवाल चले गए भादो सुदी तीन संबद्ध 1638 को इनका देहांत हो गया यानी के अंग्रेजी तारीख के अनुसार 1 सितंबर 1581 को ज्योति जोत समा गए

रामदास के प्रति सम्मानत्व

गुरु रामदास जी ने संतोष सर नामक पवित्र सरोवर की खुदाई आरंभ कराई थी गुरु रामदास जी के समय में लोगों से गुरु के लिए चंदा या दान लेना शुरू हुआ ये बड़े साधु स्वभाव के व्यक्ति थे बादशा अकबर जिस तरह तीसरे गुरु अमरदास जी का सम्मान करते थे इसी तरह सम्राट अकबर गुरु रामदास जी का भी सम्मान करते थे राम दास जी के कहने पर ही अकबर ने एक वर्ष पंजाब से लगान नहीं लिया इस कारण गुरु की गद्दी को लोगों से पर्याप्त धन प्राप्त हो गया था

Read More – गुरु तेग बहादुर का जीवन परिचय

गुरु राम दास जी के बाद गुरु की गद्दी वंश परंपरा में चलने लगी उन्होंने अपने पुत्र गुरु अर्जुन देव को अपने बात गुरु नियुक्त किया जैसा कि मैंने आपको बताया गुरु रामदास जी के बाद पांचवे नानक के रूप में इनके पुत्र अर्जुन साहिब को गुरुपद प्राप्त हुआ तो साथियों चौथे गुरु रामदास जी के बारे में यह जानकारी आपका अवश्य अच्छी लगी होगी

आशा करते है कि गुरु रामदास जी का जीवन परिचय कि यह जानकारी अपको अच्छी लगी होगी  तो Comment मे अपना 1 जरुर लिखे

Leave a Comment