संत धर्मदास का जीवन परिचय
महान संत धनि धर्मदास जी का जन्म 1405 ई. पूर्व संवत 1462 में मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ ग्राम के वैश्य कुल में हुआ था यह हिन्दू धर्मं में पैदा हुए थे और ये बनिए जाति के थे इनके पिता का नाम मनमहेश और माता का नाम सुधर्मावती थी धर्मदास ,धनी धर्मदास जी को कबीरदास जी का समकालीन माना जाता है ये कबीर दास जी के शिष्य थे और उनके समकालीन संत एवं हिंदी कवि थे धनी धर्मदास जी को छत्तीसगढ़ी के आर्थिक कवि का दर्जा भी प्राप्त है – संत धर्मदास का जीवन परिचय क्या है उनकी रचनाये एवं इनके पद आदि कि सम्पूर्ण जानकारी इस पोस्ट में लिखा गया है आशा है कि यह आपको अच्छा लगेगा
कबीर दासजी के बाद धर्मदास जी कबीर पंत के सबसे बड़े और नायक थे धर्मदास जी बांधवगढ़ के रहने वाले थे और जाति से बनिए थे बचपन से ही धर्मदास जी के हृदय में भक्ति का अंकुर था और ये साधुओं का सत्संग, दर्शन, पूजा, आदि किया करते थे मथुरा से लौटते समय कबीर दास जी के साथ इनका साक्षात्कार भेंट हुआ था उन दिनों संत समाज में कबीरदास जी की पूरी प्रसिद्धि हो चुकी थी कहा जाता है कि इनका पहले का नाम जुड़ावन था और ये कसौधन बनिया थे
धनी धर्मदास जी का विवाह
धनी धर्मदास जी का विवाह संवत् 1480 पथरहट नगर कि एक सुशिल कन्या सुलक्षणावती के साथ हुआ था कबीर पंत में सुलक्षणावती को अमिन के नाम से भी जाना जाता था और इनके नारायण दास एवं चूड़ामणि नामक दो पुत्र भी थे जिनमें से पहला पुत्र कबीर साहब के प्रति विरोध का भाव रखता था धर्मदास जी पहले वैष्णव धर्म में दीक्षित रह चूके थे और इनके गुरु का नाम रूपदास था कई तीर्थों की यात्रा कर लेने के पश्चात् जब इनका साक्षात्कार कबीर दास जी से भेंट हुआ तब कबीर के मुख से मूर्ति पूजा तीर्थाटन देवार्चन आदि का खंडन सुनकर इनका झुकाव निर्गुण संतमत की ओर हुआ अंत में ये कबीर से सत्यनाम की दीक्षा लेकर उनके प्रधान शिष्यों में हो गए और संवत 1575 यानी सन 1518 में कबीरदास जी के परलोकवास पर उनकी गद्दी इन्हीं को मिली कहते हैं
Read More – देवदास बंजारे का जीवन परिचय
धर्मंदास जी के पास अत्यधिक सम्पूर्ण संपत्ति थी जिसको उन्होंने कबीरदास जी के शिष्य होने पर सारी लुटा दी ये कबीरदास जी की गद्दी पर 20 वर्षों से भी अधिक समय तक रहे और अत्यंत वृद्ध होकर इन्होंने शरीर छोड़ा इनकी शब्दावली का भी संतों में बड़ा आदर है इनकी रचनाएँ बहुत ज्यादा नहीं है लेकिन फिर भी कबीर की अपेक्षा अधिक सरल भाव लिए हुए हैं इनकी रचनाओं में कहीं भी कठोरता और कर्कशता नहीं है इन्होंने पूर्वी भाषा का ही व्यवहार किया है इनकी अन्य युक्तियों के व्यंजक क्षेत्र अधिक मार्मिक है क्योंकि इन्होंने खंडन मंडल से विशेष प्रयोजन न रखकर प्रेम तथ्यों को लेकर अपनी वाणी का प्रसार किया है
धर्मंदास कबीर का समकालीन
संत धरमदास को कबीर के शिष्यों में सर्वप्रमुख मानने की प्रवृत्ति पाई जाती है लेकिन कुछ लोगों के अनुसार ये कबीर दास जी के समकालीन नहीं ठहरते इनके द्वारा स्थापित कही जाने वाली छत्तीसगढ़ी शाखा की कबीरपंथी परंपरा की तालिका के अनुसार इनका आविर्भावकाल विक्रम संवत की 17 वीं शताब्दी के द्वितीय या प्रथम चरण से पहले नहीं जाना जाता जिसके कारण कुछ लोग इन्हें कबीर के समकालीन नहीं मानते थे कुछ लोगों का यह मानना है कि धर्मदास का जन्म कबीर दास जी के 200 वर्षो के पश्चात पैदा हुए थे और इन्हें कबीर साहब का ही रूप माना जाता है लेकिन इतिहास के कुछ साक्ष्य के अनुसार और कबीर पंथ के अधिकांश अनुयायियों के अनुसार कबीरदास और धर्मदास जी की प्रत्यक्ष भेंट हुई थी और कबीर दासजी के गुजर जाने के बाद उनकी गद्दी का सिहासन संत धर्मदास जी को ही मिली थी इसलिए इन लोगों का समकालीन होना ज्यादा सही जान पड़ता है
Read More – गुरु तेग बहादुर का जीवन परिचय
धनी धर्मदास के वंसज किस स्थान से छत्तीसगढ़ आये
मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ जिले से धनी धर्मदास के वंसज छत्तीसगढ़ में आये थे
कबीर साहब द्वारा सलाह , उपदेश
अपने जीवन के तृतीय भाग में धर्मदास जी को मथुरा में कबीर साहब के साक्षात् दर्शन हुए थे और फिर काशी में दोनों की भेंट भी हुई थी इसके बाद कबीर साहब का इनके यहाँ बांधवगढ़ जाना इन्हें उपदेश देना तथा इनके द्वारा कबीर पंत का प्रचार किया जाना भी कहा गया है इसी प्रकार यह प्रसिद्ध हैं इनका देहांत पूरी में हुआ था जहाँ पर ये कबीर साहब के साथ रहे थे और इनकी समाधि भी यही निर्मित हुई थी संत धर्मदास जी द्वारा रचे अनेक ग्रंथों के नाम दिए जाते हैं और इनमें अधिकतर इनका कबीर साहब के साथ संवाद व प्रश्नोत्तर पाया जाता है
Read More – तुलसीदास का जीवन परिचय
इनकी कई फुटकर वानियो का एक संग्रह है धनी धर्मदास की बानी इस नाम से प्रकाशित है कुछ रचनाओं में ये सगुणोपासक भक्त के रूप में दिखाई देते हैं ओर इनकी कबीर साहब के प्रति प्रगाढ़ भक्ति एवं श्रद्धा प्रकट होती है कबीर साहब वहाँ इनके ईस्ट देव से प्रतीत होते हैं और उन्हें ये अपने स्वामी अथवा अपने आत्मा के प्रति तक के रूप में आर्तभाव के साथ स्वीकार करते हैं इनके द्वारा प्रदर्शित भावों में हृदय की सच्चाई लक्षित होती है तथा इनका अपनी अंतः साधना का वर्णन भी बहुत स्पष्ट व सरल है
धरमदास के प्रमुख शिष्य
दादूपंथी राघव दास ने अपनी भक्तमाल के अंतर्गत इनके साथ शिष्यों के नाम दिए हैं तथा उनमें से प्रथम दो अर्थात चूड़ामणि एवं कुलपति को इन का संबंधी बताया है शेष पाँच में से जागूँ भगता और सूरज गोपाल वस्तुतः इनके गुरु भाई के रूप में ही अधिक प्रसिद्ध है तथा साहिब दास एवं दलहन के विषय में कोई खास पता नहीं चलता इनके जीवन रथ की चर्चा पर अभी तक पौराणिकता की ही छाप लगी जान पड़ती है लेकिन इसके कारण इनका महत्त्व कम नहीं हो जाता है
संत धर्मदास के पदों की विशेषताएं
1.झरी लागे महिलिया गगन गहिरिय खनगरजाए खन बिजली चमकयलहरी उठय
शोभा बरनी ना जाये सुनन महल ले अमृत बरसे प्रेम अनंत हनय साधू नहाये
खुली केवरिया मिति अधरिया धानी सतगुरु जिन्दिया रखाये
धर्मदास बिनवैजकर जूरी सतगुरु चरण में रहत समाये स्पष्ट है इनको पदों में प्रेमंत्व का प्रधान है
2.मिताऊ मडैया सुनी करी गय्लो अपना बलम परदेश निकलगेलो हमरा को कुछु नै गुण देलो
जुगिन होके मय बन – बन ढूंढो हमरा को बिरहा बैराग दे गयलो संग कि सखी
सब पार उतरगैली हम धानी ठाड़ अकेली रहगेलो धरमदास यह रजू करतु है सार सबक सुमिरन देगयलो
धर्मदास द्वारा स्थापित गद्दी
छत्तीसगढ़ में संत धर्मदास के द्वारा स्थापित कबीर पंत वंश कि गद्दी में अभी तक 14गुरु हो चुके है और आने वाले समय में 15 वे वंश आचार्य गद्दी का विराजमान कुछ इस तरह है –
- सुदर्शन नाम
- कुलपति नाम
- मुक्तामणि नाम
- केवल नाम
- सुरत स्नेही नाम
- अमोल नाम
- हक्का नाम
- प्रमोध गुरु बालापरी नाम
- ग्रिन्ध्मुनी नाम
- दया नाम
- प्रकट नाम
- प्रकाश मुनि
- पाक नाम
- उग्र नाम
- धीरज नाम
छत्तीसगढ़ में संत काव्य परंपरा
छत्तीसगढ़ में साहित्य का उद्धव का श्रेय संत धर्मदास को जाता है संत धर्म दास कबीर के शिष्य थे अन्य संत कवियों की तरह धर्मदास ने भी जातीय और सामाजिक भेदभाव तथा आडंबरों का विरोध किया और कबीर पंथ की स्थापना की इसी कारण अंचल के हर एक जगह में संतों और महात्माओं का प्रभाव किसी न किसी रूप में हमें देखने को मिलता है छत्तीसगढ़ के इतिहास को देखा जाए तो यहाँ ऋषि और कृषि संस्कृति ही फलीभूत रही है
इसी कारण अंचल के हर एक जगह में संतों और महात्माओं का किसी न किसी रूप में प्रभाव हम सभी को देखने के लिए मिलता है यही कारण है कि आंचलिक साहित्य का समृद्ध इतिहास संतों के द्वारा ही दिया हुआ माना जाता है जिसकारण छत्तीसगढ़ में से साहित्य के उद्भव का श्रेय संत धर्मदास को जाता है संत धर्मदास कबीर के शिष्य थे 16 किसी भी दूसरे संत कवियों की तरह धर्मदास ने भी जातीय और सामाजिक भेदभाव तथा आडंबरों का विरोध किया था और कबीर पंथ की स्थापना की अन्य संत कवियों की तरह धर्मदास भी माया के बंधन से मुक्ति की चाह रखते हैं देखें
जमुनिया की डार मोरी टोर देव हो
एक जमुनिया के चौदह डारा
सार सबद लेके मोड़ देव हो
काया कंचन गजब प्यासा
अमृत रस म बोर देव हो
इसके बाद संत काव्य की नींव पुख्ता करने वाले कवि गुरु घासीदास का पदार्पण हुआ गुरु घासीदास की रचनाओं में संसारिक बंधनों की निस्सारता और ईश्वर की कृपा की अभिलाषा मिलती हैं देखें
चलो चलो हंसा अमरलोक जाइबो
इहा हमर संगी कोनो नई
एक संगी हवय घर के तिरिया
देखे मा जीयरा जुड़ाथे
इस तरह और भी संतों और महात्माओं ने आंचलिक साहित्य को गति प्रदान की है आज हम उन साहित्य को आत्मसात कर गौरवान्वित महसूस करते हैं अन्यथा हमें भी ओम समृद्ध साहित्य परंपरा को बनाए रखने में अपनी सहभागिता सुनिश्चित करनी चाहिए
FAQ
Q – संत धर्मदास किस राज्य के कवि थे
ANS – धनी धर्मदास जी को छत्तीसगढ़ी के आर्थिक कवि का दर्जा भी प्राप्त है
Q – संत धरमदास जी के माता का नाम क्या है ?
ANS – इनके माता जी का नाम सुधर्मावती थी
Q – धर्मदास जी के पिता का क्या नाम था ?
ANS – धर्मदास के पिता का नाम मनमहेश था
Q – कबीरदास कहा के निवासी थे ?
ANS – कबीरदास मध्यप्रदेश के बांधवगढ़ जिले के निवासी थे
Q – धर्मदास जी के कितने पद थे ?
ANS – इनके दो पद है जो कि निम्न है
Q – संत धर्मदास के गुरु का नाम क्या है ?
ANS – इनके गुरु का नाम रूपदास था
Leave a Reply