हमारे छत्तीसगढ़ कि कला अत्यंत समृद्ध है और इसे अपने मौलिकता , विविधता से पहचाने जाते है कला के माध्यम से व्यक्ति अपनी एक अलग पहचान बना सकता है लेकिन इस कला को सिखने के लिए बहुत मेहनत करना पड़ता है ऐसे कला प्रेमी के जन्म लेने से छत्तीसगढ़ अंचल भी धन्या हो जाता है एक ऐसा लोक कलाकार जो यहाँ जन्म लेकर यहाँ कि मिटटी को चंदन के बना डाला जिससे छत्तीसगढ़ का नाम और भी प्रसिद्ध हो गया जब भी पंथी गीत का जिक्र किया जाता है तो उनका नाम सबसे पहले लिया जाता है और इस महान कलाकार नाम है देवदास बंजारे जी यह व्यक्ति मांदर कि धुन में नृत्य कर पूरी दुनिया घूम लिया

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जीवन परिचय
देवदास बंजारे जी का जन्म 1 जनवरी सन 1947 को धमतरी के एक छोटे से गाँव सांकरा में हुआ था इनके पिता जी का नाम बोधराम गेंद्रे ,माता जी का नाम भगवती बाई थी देवदास को अपने पिता जी साथ ज्यादा दिन तक नहीं था जन्म के कुछ समय बाद बोधराम का अकश्मीक निधन हो गया इस घटना के बाद देवदास कि माता जी दुर्ग जिले के धनोरा गाँव में जाके बस गयी इसके बाद फूल सिंह बंजारे देवदास का पालन पोषण किया और अपना नाम दिया देवदास का बचपन में जेठू नाम था और जेठू से देवदास बनने के सफ़र में परदेशीराम वर्मा जी अपने पुस्तक आरूग फूल में लिखे है कि जेठू को बड़ी माता कि एक बीमारी हो गयी थी और भगवान कि अत्यधिक पूजा करने के बाद जेठू को इस रोग से छुटकारा मिला और इनको एक नया जीवन मिला जिस कारण इनका नाम जेठू से देवदास बंजारे रखा गया तब से यह नाम छा गया
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देवदास बने राज्य स्तर के खिलाडी
देवदास को बचपन से ही छत्तीसगढ़ी कला संस्कृति से अत्यधिक लगाओ था गाँव में कला से जुडी रामलीला , नाचा कुछ भी प्रदर्शित होता उसे ध्यान से देखकर देवदास बंजारे घर में आकर उस नृत्य का पुनः प्रयास किया करते थे जेठू जब विद्यालय जाने लगा और वहा कबड्डी ,दौड़ में रूचि लेने लगा जेठू कबड्डी खेल के हर प्रतियोगिता में भाग लेने लगे और भाग लेते – लेते राज्य स्तर के खिलाड़ी बन गए एक बार देवदास जब कबड्डी खेल रहा थे तब उसे घुटने में चोंट लग गयी जिस दिन से वह इस खेल को ही छोड़ दिये
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पंथी गीत कि प्रेरणा
एक समय देवदास के रिस्तेदारो के यहाँ विवाह का कार्य चल रहा था जिस कारण वहा पंथी नृत्य प्रदर्शित करने के लिए एक दल,टीम आया हुआ था उस नृत्य कला को देख कर देवदास अपने मन में सोचने लगे कि जिस प्रकार मेरा यह कसरती शरीर है उस हिसाब से मेरे धर्मं गुरु के संदेसा अनुशार इस नृत्य को जन – जन तक पहुचाया जाये और उस दिन से मांदर कि धुन ने देवदास बंजारे जी को पंथिमय बना दिया
सत्य नाम कि धर्मं ध्वजा पुरे विश्व में फहराने वाले संत गुरु घांसीदास जी के जीवन चरित्र और उनके उद्देश्य को नृत्य गीत प्रदर्शन के अनुशार विश्व में प्रसिद्द किये देवदास इस पंथी में इतना कुशलता से प्रदर्शित किये कि वह पुरे देश विदेश में पंथी का झंडा फहरा दिए इनके इस पंथी के सफ़र में हबीब तनवीर जी , और भिलाई इस्पात संयत्र के तरफ से बहुत बड़ा योगदान था समय रहते भिलाई के म.डी. इन्द्रजीत सिंह , पृथ्वी राज आहूजा , सोरंजिया देवदास कि कला निखारने के लिए मुख्या भूमिका निभाए है
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पुरुस्कार से सम्मानित
1972 में गुरु घांसीदास बाबा जी के जन्म स्थलीय गिरोद्ध् पुर में बहुत बड़ा मेला का आयोजन किया गया और इस आयोजन में देवदास अपने पंथी नृत्य का प्रदर्शन किये उस समय मध्यप्रदेश के मुख्यामंत्री पंडित श्यामाचरण शुक्ल जी ने देवदास बंजारे के पंथी दल को स्वर्णपदक से सम्मानित किया और छत्तीसगढ़ के सभी समाचार पत्रों में इनकी चर्चा होने लगी उस समय मध्यप्रदेश कि सरकार परम्परागत संकृति को बढ़ाने के लिए बहुत से कार्य किये
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26 जनवरी 1975 में छत्तीसगढ़ और इस्पात मत्रलाये को प्रतिनिधित्व किया गया तथा देवदास को पंथी नृत्य करते हुए दिल्ली में लाखो लोगो ने देखा 21 मई 1975 में उस समय के राष्ट्रपति महामहिम अक्रुद्दीन अली अहमद जी ने गढ़तंत्र दिवस के परेड में देवदास के नृत्य को देख बहुत ही प्रसन्न हुए और उन्हें अपनी प्रस्तुति देने के लिए राष्ट्रभवन में अमंतरण किया तथा देवदास के टीम को स्वर्णपदक के द्वारा सम्मानित किया
देवदास कि मृत्यु
देवदास बंजारे जी कि मृत्यु 26 अगस्त 2005 एक सड़क दुर्घटना के अंतर्गत हुआ था