सिखों के नौवें गुरु गुरु तेग बहादुर का जीवन परिचय बारे में बताने जा रहा हूँ इतिहास में धर्मं और सिद्धांतों की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में इनका द्वितीय स्थान हैं सिखों के साथ ही हिंदू धर्म के मानने वाले लोग भी उन्हें बहुत याद करते हैं हिंदुओं का मानना है कि गुरु तेग बहादुर जी के बलिदान से हिन्दुओं और हिंदू धर्म की रक्षा हुई तेग बहादुर जी सन 1664 से सन 1675 तक गुरु की गद्दी पर आसीन रहे
तेग बहादुर जी का जन्म कब और कहां हुआ ?
गुरु तेग बहादुर जी का जन्म पंजाब के अमृतसर पर 1 अप्रेल सन 1621 में बैसाख के कृष्णा पंचमी के सुभ अवसर में हुआ था इनके पिता का नाम गुरु हरगोविंद सिंह एवं उनकी माता जी का नाम नानकी बाई थी गुरु हरगोविंद सिंह सिखों के छठे गुरु थे और बहादुर जी इनके सबे छोटे पुत्र है
त्यागमल का नाम तेग बहादुर कैसे पड़ा ?
इनका बचपन का नाम त्यागमल था तेग बहादुर जी ने मात्र 14 वर्ष की कम आयु में अपने पिता के साथ मुगलों के हमलो के खिलाफ़ हुए और युद्ध में इन्होंने अपनी अदम्य वीरता का परिचय दिया था उनकी वीरता से प्रभावित होकर इनके पिता ने इनका नाम त्यागमल से तेग बहादुर रख दिया था एक बहादुर यानी के तलवार का धनी युद्ध स्थल में भीषण रक्तपात से गुरु तेग बहादुर जी के बैरागी मन पर गहरा प्रभाव पड़ा था और उनका मन आध्यात्मिक चिंतन की ओर हो गया था धैर्य वैराग्य और त्याग की मूर्ति गुरु तेग बहादुर जी ने एकांत में लगातार 20 वर्षों तक बाबा बकाला नामक स्थान पर साधना की थी
गुरु तेग बहादुर जयंती 2023
गुरु तेग बहादुर एक महान व्यक्ति थे इनको क्रन्तिकारी युग का पुरुष भी मानते है इन्होने धर्म को बचाने के लिए अपने आप को बलिदान कर दिए जिस कारण लोग इन्हें बहुत पसंद करते है इसलिए हर वर्ष 24 नवम्बर को गुरु तेग बहादुर जयंती मनाई जाती है
सीखो के नौवे गुरु की प्राप्ति
आठवें गुरु हरकृष्ण जी यानी के गुरु हरकिशन जी ने देह त्याग से पहले इतना इशारा कर दिया था कि अगला गुरु बकाले में मिलेगा गुरु तेग बहादुर के गुरु की गद्दी पर आसीन होने के पीछे एक रोचक कथा है जब आठवें गुरु हरकिशन जी ने मृत्यु से पहले इतना इशारा कर दिया था कि बकाले में नौवे गुरु प्राप्त होंगे तो उनकी इस बात का कई लोगों ने फायदा उठाया मरते हुए गुरु के शब्दों में अस्पष्टता का लाभ उठाते हुए कई लोगों ने खुद को नया गुरु होने का दावा करते हुए बकाला में स्थापित कर लिया इतने सारे दावेदारों को देख कर सिख हैरान रह गए उन्हीं दिनों वहाँ एक धनी व्यापारी था जिसका नाम था बाबा माखनशाह लबाना एक बार बाबा माखनशाह लबाना ने अपने जीवन के लिए प्रार्थना की उसका जीवन संकट से घिर गया था उसने प्रार्थना की थी कि अगर यह संकट मिट जाएगा तो वह गुरु को 500 सोने के सिक्के उपहार में देगा उसकी मन्नत पूरी हुई और वह नौवे गुरु की तलाश में निकल पड़ा वह एक दावेदार से दूसरे दावेदार के पास गया
Read More – संत धर्मदास का जीवन परिचय
गुरु को उसने दो सोने के सिक्के भेंट किए उसे यह विश्वास था कि असली गुरु को पता चल जाएगा कि उसका वायदा 500 सिक्कों का था प्रत्येक गुरु से उसकी मुलाकात हुई और उन्होंने दो सोने के सिक्कों को स्वीकार कर लिया इसी तरह एक के बाद एक तथा कथित गुरुओं से बाबा माखनशाह लबाना मिलते रहे इसी प्रक्रिया में वह गुरु तेग बहादुर के पास में पहुंचे गुरु तेग बहादुर भी उस समय बकाला में ही निवास थे लबाना ने तेग बहादुर को दो सोने के सिक्कों की सामान्य भेट प्रदान की तेग बहादुर ने उन्हें अपना आशीर्वाद दिया और कहा वायदा तो सोने के 500 सिक्को का था पर तुम्हारी भेट तुम्हारे वायदा से काफी कम है माखनशाह लबाना खुश हो गया उसे पता चल गया की यही असली गुरु हैं वे खुशी में तुरंत छत की तरफ भागे और छत से चिल्लाने लगे मुझे गुरु मिल गए हैं मुझे गुरु मिल गए हैं इसके बाद एक सिख संगत बकाला पहुंची और तेग बहादुर जी का सिखों के नौवें गुरु के रूप में अभिषेक किया गया इस तरह सिखों को अपने नौवे गुरु प्राप्त हुए
तेग बहादुर ने धर्म प्रसार के लिए किया भ्रमण
जैसा कि मैंने आपको बताया की इनका जन्म अप्रैल 1621 में अमृतसर पंजाब में हुआ था और ये छठे गुरु गुरु हरगोविंद जी के सबसे छोटे पुत्र थे तेग बहादुर जी निडर योद्धा थे और एक आध्यात्मिक विद्वान व्यक्ति थे ये एक महान कवि थे इनके 115 सूक्त श्री गुरु ग्रंथ साहेब में शामिल हैं गुरूजी ने धर्म के प्रसार के लिए कई स्थानों का भ्रमण किया आनंदपुर साहब से कीरतपुर रोपण सैफाबाद होते हुए वे ख्याला पहुंचे यहाँ उपदेश देते हुए दमदमा साहब से होते हुए कुरुक्षेत्र पहुंचे कुरुक्षेत्र से यमुना के किनारे होते हुए कड़ामानकपुर पहुंचे और यहीं पर उन्होंने साधु भाई मलूकदास का उद्धार किया
तेग बहादुर ने मलूकदास को खुशी प्रदान किया
मलूकदास जी एक महान वैष्णव संत थे यह गुरु तेग बहादुर जी के दर्शन करना चाहते थे परंतु उन्होंने यह निश्चय किया हुआ था की अगर गुरु जी अंतर्यामी है तो स्वयं ही मुझे बुलाकर दर्शन देंगे अंतर्यामी गुरु मलूकदास जी की प्रतिज्ञा जान गए थे उन्होंने एक सिख को कहा मलूकदास के डेरे जाकर उसे पालकी में बिठाकर हमारे पास ले आओ वह सिख मलूकदास जी के पास गया और मलूकदास जी से उसने कहा कि गुरु जी आपको याद कर रहे हैं पालकी में बैठ जाइए हम आपको लेकर चलते हैं गुरु तेग बहादुर जी का ऐसा हुक्म सुनकर मलूकदास जी बहुत प्रसन्न हुए पालकी से उतरकर उन्होंने गुरु को माथा टेका गुरु जी के दर्शन करके मलूकदास जी आनंद में खो गए उन्होंने गुरूजी से प्रार्थना की के आप मेरे डेरे पर भी चले मैं आपकी सेवा करके अपना जन्म सफल करना चाहता हूँ उसकी प्रार्थना सुनकर गुरु जी ने डेरे पर जाना स्वीकार किया मलूक जी ने भोजन तैयार करके गुरूजी के आगे रख दिया इस तरह मलूकदास जी को गुरु जी ने खुशी प्रदान किया
तेग बहादुर जी के लिए फग्गू बनवाया बड़ा दरवाजा
गुरूजी अपनी यात्रा के दौरान अपने प्रति श्रद्धा रखने वाले लोगों का कल्याण करते रहते थे एक बार जब वह काशी से सासाराम शहर की ओर यात्रा पर थे तो वहाँ पहुँचकर एक मंसच सिख फग्गू की चिरकाल के दर्शन करने की भावना को पूरा करने के लिए उनके यहाँ भी गए फग्गू ने एक मकान बनवाया हुआ था उसका दरवाजा बहुत बड़ा था जिसके आगे एक बड़ा खुला आंगन था लोग जब फग्गू से पूछा करते थे की तुमने इतने बड़े दरवाजे को क्यों बनवाया है तो वह कहा करता था कि ये तो मैंने गुरूजी के लिए बनवाया है जब वह मेरे घर आएँगे तब घोड़े पर सवार होकर आयेंगे और उन्हें घोड़े से ना उतरना पड़े इसलिए मैंने यह दरवाजा इतना बड़ा बनवाया है ताकि वह घोड़े पर बैठे बैठे ही मेरे घर के अंदर आ जाए फग्गू की श्रद्धा भावना को अंतर्यामी गुरु जान गए थे रास्ते में सभी को दर्शन देते हुए वह फग्गू के यहाँ भी पहुंचे फग्गू उन्हें अपने सामने देखकर बहुत प्रसन्न हुआ उसने गुरु जी के चरणों पर माथा टेका इस तरह गुरूजी अपने प्रति श्रद्धा रखने वाले लोगों का कल्याण करते रहते थे
गोविंद सिंह बने सिख के दसवे गुरु
गुरूजी प्रयाग, बनारस, पटना, असम आदि क्षेत्रों में भी गए जहाँ उन्होंने आध्यात्मिक, सामाजिक, आर्थिक, उन्नयन के लिए रचनात्मक कार्य किये असम के राजा नी संतान थे संतान की आशा में आशीर्वाद लेने के लिए अपनी रानी के साथ गुरूजी से मिले और गुरूजी ने उन्हें पुत्र लाभ होने का आशीर्वाद दिया आगे चलकर राजा के यहाँ पुत्र का जन्म हुआ गुरूजी ने आध्यात्मिकता और धर्म का ज्ञान चारों ओर बाटा रुड़ियाँ अंधविश्वासों की आलोचना करके नया आदर्श स्थापित किए उन्होंने परोपकार के लिए कुएं खुदवाना धर्मशालाएं बनवाना आदि कार्य किये इन्ही यात्राओ के दौरान 1666 में गुरु जी के यहाँ पटना साहिब में पुत्र का जन्म हुआ यही बालक गोविंद आगे चलकर दसवें गुरु गुरु गोविंद सिंह बने
औरंगजेब ने दिया इस्लाम धर्म अपनाने का आदेश
मुगलशासक औरंगजेब की हरधर्मिता थी कि वह अपने धर्म के अतिरिक्त दूसरे किसी धर्म की प्रशंसा को सहन नहीं कर सकता था औरंगज़ेब ने सभी को इस्लाम धर्म अपनाने का आदेश दे दिया था इस प्रकार की जबरदस्ती शुरू हो जाने के कारण दूसरे धर्म के लोगों का जीवन बहुत कठिन हो गया था अत्याचारों से परेशान होकर कश्मीर के पंडित गुरु तेग बहादुर जी के पास आए और उन्होंने गुरु जी को बताया कि किस प्रकार इस्लाम को स्वीकार करने के लिए अत्याचार हो रहे हैं यातनाएं दी जा रही है हमें मारा जा रहा है कृपया आप हमें बचाइए और धर्म की रक्षा कीजिये गुरु तेग बहादुर जब लोगों की व्यथा सुन रहे थे उस समय उनका नौ वर्षीय पुत्र गोविंद राय यानी के दसवें गुरु गोविन्द सिंह जी वहाँ आए और उन्होंने अपने पिताजी से पूछा पिताजी ये सब इतने उदास क्यों हैं और आप किस सोच में डूबे हुए है गुरु तेग बहादुर ने सारी समस्याएं बालक के सामने रख दी बालक ने पूछा पिताजी इसका हल कैसे होगा
Read More – देवदास बंजारे जी का जीवन परिचय
गुरु साहिब ने कहा इसके लिए बलिदान देना होगा बालक गोविंद ने कहा आप से महान पुरुष कोई नहीं है बलिदान देकर आप भी इन सब के धर्म को बचाइए उस बच्चे की बातें सुनकर वहाँ उपस्थित लोगों ने पूछा यदि आपके पिता बलिदान देंगे तो आप अनाथ हो जाएंगे बालक गोविंद ने कहा यदि मेरे अकेले के यतिन होने से लाखों बच्चे यतीम होने से बच सकते हैं यह अकेले मेरी माता के विधवा हो जाने से लाखों माताएं विधवा होने से बच सकती है तो मुझे यह स्वीकार है यह बात सुनकर गुरु तेग बहादुर जी गर्व से भर गए उन्होंने पंडितों से कहा आप जाकर औरंगजेब से कह दीजिये की यदि गुरु तेग बहादुर ने इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया तो उसके बाद हम भी इस्लाम धर्म ग्रहण कर लेंगे और यदि आप गुरु तेग बहादुर जी से इस्लाम कुबूल नहीं करवा पाए तो हम भी इस्लाम धारण नहीं करेंगे
गुरु तेग बहादुर जी की मृत्यु कब और कैसे हुई ?
औरंगजेब तक जब यह बात पहुंची तो उसने यह बात स्वीकार कर ली औरंगजेब ने उन्हें बहुत से लालच दिए पर गुरु तेग बहादुर जी नहीं माने तब उन पर अत्याचार किए गए उन्हें कैद कर लिया गया गुरूजी के दो शिष्यों को मारकर गुरु तेग बहादुर जी को डराने की कोशिश की गई लेकिन गुरूजी नहीं माने उन्होंने औरंगजेब से कहा यदि तुम जबरदस्ती लोगों से इस्लाम ग्रहण करवाओगे तो तुम सच्चे मुसलमान नहीं हो क्योंकि इस्लाम धर्म यह शिक्षा नहीं देता कि किसी पर जुल्म करके मुस्लिम बनाया जाए औरंगजेब यह सुनकर आगबबूला हो गया औरंगजेब ने उन्हें इस्लाम स्वीकार करने के लिए कहा गुरूजी ने कहा हम सीस कटा सकते हैं लेकिन केश नहीं नवंबर 1675 में चांदनी चौक पर गुरु तेग बहादुर जी का शीश काटने का हुक्म जारी कर दिया गया और गुरूजी ने नवंबर 1675 को हंसते हंसते बलिदान दे दिया
तेग बहादुर के सहीद स्थान पर बना गुरुद्वारा
गुरु तेग बहादुर जी की याद में उनके शहीदी स्थल पर गुरुद्वारा बना हुआ है जिसका नाम गुरुद्वारा शीश गंज साहिब है गुरु तेग बहादुर जी की बहुत सी रचनाएँ ग्रंथ साहब में संग्रहित है इन्होंने बहुत सरल शब्दों में पदों और साथी की रचनाएं की सन 1675 में गुरूजी ने धर्म की रक्षा के लिए अन्याय और अत्याचार के विरुद्ध अपने प्राण न्योछावर कर दिए उनके अद्वितीय बलिदान ने देश की सर्व धर्म समभाव की संस्कृति को सुदृढ़ बनाया और धार्मिक सांस्कृतिक वैचारिक स्वतंत्रता के साथ निर्भयता से जीवन जीने का मंत्र भी दिया दिल्ली के चांदनी चौक में नवंबर 1675 को काजी ने फतवा पड़ा और जल्लाद ने तलवार से गुरु तेग बहादुर जी का सर धड़ से अलग कर दिया
Read More – तुलसीदास का जीवन परिचय
किंतु गुरु तेग बहादुर जी ने अपने मुँह से आवाज तक नहीं निकलने दी अत्याचारी शासक के धर्म विरोधी और वैचारिक स्वतंत्रता का दमन करने वाली नीतियों के विरुद्ध गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान एक अभूतपूर्व ऐतिहासिक घटना थी गुरुद्वारा शीशगंज साहिब तथा गुरुद्वारा रकाबगंज साहिब पुन स्थानों की याद दिलाते हैं जहाँ गुरु तेग बहादुर जी की हत्या की गई थी और जहाँ उनका अंतिम संस्कार किया गया था विश्व इतिहास में धर्म एवं मानवीय मूल्यों आदर्शों एवं सिद्धांत की रक्षा के लिए का न्योछावर कर देने वालों की संख्या में गुरु तेग बहादुर जी का स्थान अमित हैं
Leave a Reply