भारत की पावन धरा पर कई वीर और महान शासक पैदा हुए जिनकी शौर्य गाथाएं जितनी बताया जाए कम ही पड़ती है एक ऐसे ही महान शासक और योद्धा थे राणा कुम्भा जिन्हे महाराणा कुंभकर्ण भी कहते थे राणा कुम्भा ने अपने जीवन में एक भी युद्ध नहीं हारा उन्होंने मेवाड़ के 32 किलो का निर्माण करवाया और उनका स्थापत्य युग स्वर्ण काल के नाम से जाना जाता है।
13वीं शताब्दी के अंत में अलाउद्दीन खिलजी ने पूरे मेवाड़ को तहस-नहस कर दिया धीरे-धीरे मेवाड़ अपना महत्व खोता जा रहा था सन 1326 में राणा हम्मीर मेवाड़ की गद्दी पर बैठे तब मेवाड़ थोड़ा मजबूत हुआ लेकिन फिर भी मेवाड़ अपना महत्व धीरे-धीरे खोता जा रहा था तब आगे चलकर एक ऐसे राजा हुए जिन्होंने मेवाड़ को एक नई पहचान दी उन्होंने अपने जीवन में कई लड़ाई लड़ी और दुश्मनो का हाल बेहाल किया उनका नाम था महाराणा कुम्भा।
महाराणा कुम्भा का शासन
महाराणा कुम्भा का शासन 1433 से 1468 तक रहा उनके पिता राणा मोकल और माता सौभाग्य देवी थी राणा कुम्भा के पिता की हत्या उनके चाचा मेरा और महापौर प्रमाण ने की थी राणा मोकल की हत्या के बाद राणा कुम्भा 1433 ईसवी में मेवाड़ के शासक बने उन्होंने अपने पिता की हत्या का बदला लेने रणमल राठौड़ को भेजा।
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रणमल राठौड़ ने चाचा और मेरा को तो मार दिया फिर महापौर परमार भागकर मालवा के सुल्तान की शरण में चला गया मालवा के सुल्तान मोहम्मद खिलजी था उसने युद्ध के लिए हथियार उठाया और ऐसे ही शुरू हुआ राणा कुम्भा का युद्ध का सिलसिला अब हम जानेंगे राणा कुम्भा द्वारा लड़े गए प्रमुख युद्ध के बारे में कि राणा कुम्भा द्वारा लड़ी गई।
सारंगपुर का युद्ध
जब महापौर परमार मोहम्मद खिलजी की शरण में गया तो खिलजी और राणा कुम्भा के मध्य युद्ध हुआ यह युद्ध सन 1437 ई हुआ जिसे सारंगपुर के युद्ध के नाम से जानते हैं राणा कुम्भा ने इस युद्ध में मुहम्मद खिलजी को बुरी तरह हराया इस विजय को उपलक्ष में राणा कुम्भा ने चित्तौड़ में विजय स्तंभ का निर्माण कराया।
कुंभलगढ़ पर आक्रमण
सारंगपुर की हार के बाद मोहम्मद खिलजी ने 1442 ईसवी में कुंभलगढ़ पर आक्रमण कर दिया तब राणा कुम्भा बूंदी से वापस चित्तौड़गढ़ लौट आए और पूनम मोहम्मद खिलाड़ी और राणा सांगा के मध्य युद्ध हुआ इस लड़ाई में राणा सांगा ने मोहम्मद खिलजी को हराकर मांडू भेज दिया मोहम्मद खिलजी को लगा कि राणा कुम्भा को हराना आसान नहीं लेकिन मेवाड़ के समीप पर विजय प्राप्त कर सकता है यह सोच उसने सन 1444 ईसवी में गागरोन दुर्ग पर आक्रमण किया उस समय गागरोण खिलजी राजपूतों के पास था और उनके सरदार का नाम दाहिर था खिलजी और दाहिर के मध्य 7 दिनों तक युद्ध चला और और अंत तक खिलजी विजयी रहा।
नागौर युद्ध
1456 ईसवी तत्कालीन समय में नागौर का शासक फिरोज खान था उसकी मृत्यु के बाद उसका छोटा पुत्र मुजाहिद राजगद्दी पर बैठा इससे बड़ा बेटा शम्स खान नाराज था उसने राणा कुम्भा से संधि कर ले राणा कुम्भा ने अच्छा अवसर देख शम्स खान को नागौर की गद्दी पर बैठाया लेकिन राजा बनने के बाद शम्स खान ने राणा कुम्भा की संधि अस्वीकार कर दिया तब राणा कुम्भा नागौर पर आक्रमण किया नागौर की इस भयानक युद्ध में महाराणा कुम्भा विजय रहे उन्होंने शम्स खान को हरा दिया।
कुतुबउद्दीन अहमद शाह द्वितीय से युद्ध
नागौर की गद्दी शम्स खान से छिन चुकी थी सुल्तान कुतुबउद्दीन राणा कुम्भा से युद्ध करने के लिए बड़ा वही उस समय सिरोही में देवड़ा राजा का शासन था अब ऊपर एक समय देवड़ा का शासन था आबू पर एक समय देवड़ा राजाओ का शासन था लेकिन राणा कुम्भा से परास्त होकर देवड़ा सिरोही ने सिमट गए थे सुल्तान को कुतुबउद्दीन के मेवाड़ आक्रमण की सूचना देवड़ा राज्यों को मिली तब उसने कुतुबुद्दीन से प्रार्थना करी कि वह आबू पर आक्रमण कर राणा कुम्भा को हरा दे और आबू उसे सौप दे सुलतान मानिया उसने अपने सेनापति इमाद ऊल मुल्क को आबू पर आक्रमण करने भेजा लेकिन वह राणा कुम्भा के सामने नहीं टिक पाया।
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राणा कुम्भा ने कुतुबुद्दीन की सेनाओं को पराजित कर दिया तब सुलतान कुतुबुद्दीन क्रोधित होकर कुंभलगढ़ पर आक्रमण किया राणा कुम्भा ने कुतुबुद्दीन को मुंहतोड़ जवाब दिया कुम्भा और सुल्तान के मध्य भीषण युद्ध कुल तीन दिनों तक चला कई जाने गई कई घायल हुए रक्त बहता गया और इसी रक्त से योद्धा अपनी वीरता का परिचय देते रहे राणा कुम्भा के अधिकार से उनके कई राज्य निकल गए थे गुजरात के शासक महमूद बेगड़ा और मोहम्मद खिलजी के बीच शत्रुता थी इस कारण से राणा कुम्भा को यह मौका मिल गया कि उन्होंने अपने खोए हुए राज्य पुनः जीत लिया।
किलो का निर्माण
राणा कुम्भा ने मेवाड़ के 84 किलो में से 32 किलो का निर्माण करवाया कुंभलगढ़ के 38 किलोमीटर लंबी दीवार का निर्माण कुम्भा ने ही करवाया और कुंभलगढ़ का किला राजस्थान का सबसे ऊंचा किला भी है इसकी ऊंचाई 1075 मीटर है।
विजय स्तंभ
राणा कुम्भा ने चित्तौड़ में 37 मीटर ऊंचे 9 मंजिला टावर का निर्माण करवाया था जिसे हम विजय स्तंभ अथवा विजय की मीनार के रूप में जानते हैं इस स्तंभ में हिंदू देवी-देवताओं की मूर्ति है और इसमें ही रामायण महाभारत दृश्य फिल्माए गए हैं कुम्भा कला और संगीत के क्षेत्र में भी अच्छे थे खुद से ही वीणा बजाते थे और अपने दरबार में कलाकारों को संरक्षण देते।
महाराणा कुम्भा द्वारा लिखित ग्रंथ
संगीतराज, संगीत मीमांसा, सूडप्रबंध, कामराज रतिसार, संगीतराज़, रसिकप्रिया, गीतगोविंद, एकलिंग जैसे 10 से 12 ग्रंथ लिखे संगीतराज की रचना 1509 में चित्तौड़ में की गयी थी यह ग्रंथ पांच उल्लास में बंटी है –
- पथ रत्न कोष
- गीत रत्न कोष
- रास रत्न कोष
- वाध्य रत्न कोष
- नृत्य रत्न कोष
महाराणा कुम्भा की मृत्यु कैसे हुई
राणा कुम्भा ने काम शास्त्र से सम्बंधित कामराज यातिसार ग्रंथ लिखा राणा कुम्भा ने कई दुर्ग और तालाब बनवाए लेकिन दुखन की बात यह रही मेवाड़ के कुम्भा कहे जाने वाले राणा कुम्भा की हत्या सन 1468 में उनके बेटे उदा सिंह ने ही कर दिया और इस तरह मेवाड़ का एक ऐसा राजा जो कभी कोई भी युद्ध नहीं हारा वे अपने पुत्र के हाथो मारे गए।
FAQ – अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न
महाराणा कुंभा की पत्नी का नाम क्या था?
महाराणा कुम्भा की पत्नी का नाम कृष्णा भक्त मीरा बाई थी इनका विवाह हो तो गया था लेकिन मीरा बचपन से ही कृष्णा भक्ति में लीन थी।
महाराणा कुम्भा में क्या क्या बनवाया था?
महाराणा कुम्भा ने विजय स्तम्भ, 38 किलोमीटर लंबी दीवार, 32 किलो का निर्माण बनवाया था।
संगीतराज ग्रंथ के कितने चरण है?
संगीतराज के पथ रत्न कोष गीत रत्न कोष, रास रत्न कोष, वाध्य रत्न कोष, नृत्य रत्न कोष 5 चरण है।
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